Jagannath Rath Yatra 2024: इस साल कांकेर में 92 साल के इतिहास में पहली बार भगवान जगन्नाथ टेंट में विराजमान होंगे। जनकपुर वार्ड के गुंडिचा मंदिर की जर्जर स्थिति के कारण यह निर्णय लिया गया है, जहां परंपरागत रूप से भगवान जगन्नाथ निवास करते हैं।
कांकेर मंदिर का ऐतिहासिक महत्व
कांकेर में जगन्नाथ मंदिर की स्थापना 1932 में कांकेर के राजा ने की थी। तब से, हर साल राजापारा के श्री जगन्नाथ स्वामी मंदिर से निकलने वाली रथ यात्रा एक प्रमुख आयोजन रही है। इस साल भी भगवान की रथ यात्रा की तैयारियां जोरों पर हैं, और यात्रा दोपहर 3 बजे शुरू होगी, जिसमें राजपरिवार के सदस्य पूजा-अर्चना करेंगे।
अयोध्या में भगवान राम की स्थिति से समानता
अयोध्या में भगवान राम ने 500 साल तक टेंट में बिताए थे, और अंततः भव्य मंदिर में विराजमान हुए। इसी तरह, कांकेर में भी भगवान जगन्नाथ अपने गुंडिचा मंदिर के पुनर्निर्माण की प्रतीक्षा कर रहे हैं। भगवान राम को उनका मंदिर मिल गया है, लेकिन कांकेर में भगवान जगन्नाथ को अभी भी उनका स्थान नहीं मिल पाया है।
मंदिर समिति का दृष्टिकोण
मंदिर समिति के अध्यक्ष श्रवण चौहान के अनुसार, गुंडिचा मंदिर कई वर्षों से जर्जर स्थिति में है। प्रशासन से कई बार अनुरोध करने के बावजूद, मंदिर का जीर्णोद्धार नहीं किया गया, जिसके कारण भगवान को टेंट में रहना पड़ेगा।
Jagannath Rath Yatra 2024: तीन साल स्टोर रूम में
2020 की महामारी के समय से, भगवान जगन्नाथ मंदिर के स्टोर रूम में रह रहे हैं। परंपरा के अनुसार, भगवान को गर्भगृह से निकालकर रथ में सवार किया गया, लेकिन मंदिर की स्थिति में सुधार नहीं हुआ, जिसके कारण इस साल टेंट का उपयोग किया जा रहा है।
92 साल के इतिहास में पहली बार
इस साल 92 साल के इतिहास में पहली बार भगवान जगन्नाथ को 10 दिन टेंट में बिताने होंगे। जनकपुर वार्ड के निवासियों ने अस्थाई टेंट की व्यवस्था की है, जहां भगवान विश्राम करेंगे। वार्डवासियों का कहना है कि हर साल भगवान उनके वार्ड में 10 दिन के लिए आते थे, और मंदिर की जर्जर स्थिति के कारण उन्होंने टेंट तैयार किया है।
प्रधानमंत्री मोदी का अभिनंदन
पीएम ने कहा, ”पवित्र रथ यात्रा की शुरुआत पर शुभकामनाएं। हम महाप्रभु जगन्नाथ को नमन करते हैं और प्रार्थना करते हैं कि उनका आशीर्वाद हम पर सदैव बना रहे।”
निष्कर्ष: कांकेर में 2024 की रथ यात्रा ऐतिहासिक होगी, जिसमें भगवान जगन्नाथ पहली बार टेंट में रहेंगे। तमाम चुनौतियों के बावजूद, समुदाय की भावना और भक्ति में कोई कमी नहीं है, और वे इस परंपरा को जारी रखने के लिए समर्पित हैं।
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