Gupt Navratri 2024: दोस्तों, आषाढ़ गुप्त नवरात्र का पावन समय आ गया है। देवी दुर्गा की कृपा पाने का यह विशेष अवसर आपके घर में खुशियों की बहार ला सकता है। आज हम जानेंगे कि गुप्त नवरात्र के दौरान दुर्गा चालीसा का पाठ कैसे आपकी जिंदगी को बदल सकता है।
आषाढ़ गुप्त नवरात्र का महत्व
आषाढ़ गुप्त नवरात्र के दौरान देवी दुर्गा की 10 महाविद्याओं की पूजा का विधान है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो साधक इस दौरान कठिन व्रत का पालन करते हैं और देवी की सच्ची श्रद्धा के साथ आराधना करते हैं, उन्हें देवी दुर्गा का पूर्ण आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसके साथ ही घर में शुभता और खुशहाली का आगमन होता है।
Gupt Navratri 2024: पहला दिन और दुर्गा चालीसा का महत्व
आज आषाढ़ गुप्त नवरात्र का पहला दिन है। यह दिन मां दुर्गा की 10 महाविद्याओं की पूजा के लिए समर्पित है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन पूजा के दौरान ‘दुर्गा चालीसा’ का पाठ बहुत शुभ माना जाता है। दुर्गा चालीसा का पाठ करने से देवी दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है और घर में सुख-समृद्धि आती है।
दुर्गा चालीसा का पाठ कैसे करें
पूजा स्थल को साफ कर लें और मां दुर्गा की प्रतिमा या तस्वीर के सामने दीपक जलाएं। फिर सच्चे मन और श्रद्धा के साथ दुर्गा चालीसा का पाठ करें। इससे न केवल आपके मन को शांति मिलेगी, बल्कि देवी दुर्गा की कृपा से आपके घर में खुशहाली और समृद्धि का आगमन होगा।
तो दोस्तों, इस आषाढ़ गुप्त नवरात्र पर देवी दुर्गा की आराधना करें और दुर्गा चालीसा का पाठ करें। मां दुर्गा की कृपा से आपके जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आएगी। जय माता दी!
।।दुर्गा चालीसा।।
नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो अंबे दुःख हरनी॥
निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूं लोक फैली उजियारी॥
शशि ललाट मुख महाविशाला। नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥
रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जन अति सुख पावे॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला। तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी। तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें। ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा। परगट भई फाड़कर खम्बा॥
रक्षा करि प्रह्लाद बचायो। हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं। श्री नारायण अंग समाहीं॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी। महिमा अमित न जात बखानी॥
मातंगी अरु धूमावति माता। भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी। छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥
कर में खप्पर खड्ग विराजै। जाको देख काल डर भाजै॥
सोहै अस्त्र और त्रिशूला। जाते उठत शत्रु हिय शूला॥
नगरकोट में तुम्हीं विराजत। तिहुँलोक में डंका बाजत॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी। जेहि अघ भार मही अकुलानी॥
रूप कराल कालिका धारा। सेन सहित तुम तिहि संहारा॥
परी गाढ़ सन्तन पर जब जब। भई सहाय मातु तुम तब तब॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी। तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावें। दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई। जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥
शंकर अचरज तप कीनो। काम क्रोध जीति सब लीनो॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को। काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥
शक्ति रूप का मरम न पायो। शक्ति गई तब मन पछितायो॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा। दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो। तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥
आशा तृष्णा निपट सतावें। रिपु मुरख मोही डरपावे॥
करो कृपा हे मातु दयाला। ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला।
जब लगि जियऊं दया फल पाऊं। तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं॥
श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै। सब सुख भोग परमपद पावै॥
॥ इति श्रीदुर्गा चालीसा सम्पूर्ण ॥
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