Diwali 2024: आदिकाल से चली आ रही परंपरा के अनुसार, रावण दहन के 21 दिन बाद ही हर वर्ष दीपावली क्यों मनाई जाती है? क्या यह सवाल आपके मन में भी आता है? हालाँकि इस सवाल के इर्द-गिर्द काफी कथाएँ घूमती रहती हैं, परंतु इसका सही उत्तर क्या है? तो चलिए जानते हैं कि आखिर दशहरा के 21 दिन बाद ही क्यों मनाई जाती है दीपावली और इसके पीछे का छिपा रहस्य क्या है।
विषय सूची
दशहरा और दीपावली के मुख्य तथ्य
हिंदू धर्म में शारदीय नवरात्रि के 9 दिन पूरे होने के बाद, ठीक दसवें दिन रावण दहन किया जाता है जिसे दशहरा या विजयदशमी के नाम से भी जाना जाता है। दशहरा पर्व आश्विन माह में मनाए जाने वाले त्यौहारों में से एक है। त्रेता युग में इस दिन भगवान राम ने रावण का अंत किया था और फिर से अधर्म को मिटाकर धर्म की पुनःस्थापना की थी।
दशहरा के 21 दिन बाद ही क्यों मनाई जाती है दीपावली?
महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में प्रभु श्री राम के वनवास, माता सीता के हरण और रावण के वध की कथा दी गई है। तभी से रावण दहन की परंपरा की शुरुआत हुई। पौराणिक काल से दशहरा पर्व के 21 दिन पूरे हो जाने पर दीपावली का शुभ पर्व मनाया जाता है। आपको बता दें कि जब भगवान राम ने त्रेता युग में 14 वर्ष का वनवास तथा राक्षस रावण का वध कर माता सीता को रावण के चंगुल से वानर सेनाओं की मदद से आजाद किया था, तब श्रीलंका से अयोध्या तक आने में भगवान राम, लक्ष्मण, माता सीता सहित हनुमान जी को पूरे 21 दिनों तक चलना पड़ा था।
ये भी पढ़ें: अब IRCTC यात्रियों को मिलेंगी किफायती दरों में होटल जैसी प्रीमियम सुविधाएं, जाने पूरी जानकारी
अगर हम पैदल पथ की बात करें तो श्रीलंका से अयोध्या की दूरी लगभग 2,600 से 3,307.8 किलोमीटर के बीच है। यह दूरी करीब 491 घंटे में तय की गई। ऐसा माना जाता है कि भगवान राम ने श्रीलंका से अयोध्या की यात्रा 21 दिनों में पूरी की थी। क्योंकि रावण दहन दशहरे के दिन हुआ था, और ठीक 21 दिन बाद जब भगवान राम, लक्ष्मण और माता सीता सहित हनुमान जी अयोध्या पहुंचे, तब अयोध्या वासियों ने पूरे शहर, गलियों, मोहल्लों को दीपों तथा मोमबत्तियों से रोशन कर दिया था। तभी से दिवाली मनाने की परंपरा भारतवर्ष में चलन में है।
इसके अलावा, कुछ अन्य तथ्य भी हैं जो कि महत्वपूर्ण माने जाते हैं:
- अंधकार पर प्रकाश की जीत: माना जाता है कि दिवाली का त्यौहार अंधेरे को मिटाकर प्रकाश को उजागर करता है, इसलिए दिवाली का त्यौहार मनाया जाता है।
- शरद ऋतु का आगमन: दशहरा यानी विजयदशमी के बाद शरद ऋतु का आगमन होता है, शरद ऋतु के स्वागत के लिए भी दिवाली का त्यौहार खास माना जाता है।
- लक्ष्मी पूजा: दिवाली के दिन माता लक्ष्मी की पूजा विधिपूर्वक करने का विधान भी है।
- हिंदू पंचांग: हिंदू तिथि के अनुसार, रावण दहन के ठीक 21 दिन बाद अमावस्या होती है, इस अवसर पर दीपावली का त्यौहार मनाया जाता है।
ये भी पढ़ें: Karva Chauth 2024: व्रत करते समय इन गलतियों से बचें और जानें पूजा की विधि
गूगल मैप ने श्रीलंका और अयोध्या की असल दूरी बताई
यदि आप रामायण यानी त्रेता युग के इस तथ्य को वर्तमान समय में गूगल मैप पर जाकर जांचना चाहते हैं, तो उसके लिए आप सबसे पहले गूगल मैप पर जाएं। फिर ‘स्टार्टिंग डेस्टिनेशन’ में श्रीलंका और ‘एंड डेस्टिनेशन’ में अयोध्या की लोकेशन डालें। यदि आप वॉकिंग आइकन पर क्लिक करेंगे, तो आपको वॉकिंग डेस्टिनेशन 491 घंटे का समय स्क्रीन पर दिखेगा।
इसी तरह अगर आप इसे दिनों में कन्वर्ट करेंगे, तो आप पाएंगे कि यह समय करीब 20 से 21 दिनों तक आएगा। यह तथ्य अवश्य ही चौंका देने वाला है कि इतने सालों बाद भी रामायण की सत्यता की पुष्टि की जा सकती है, जिसकी रचना महर्षि वाल्मीकि ने राम जन्म से पहले ही कर दी थी।
रावण की नगरी श्रीलंका जाने में कितना खर्च आएगा?
अगर हम वर्तमान में देखें, तो भारत के किसी भी कोने से श्रीलंका (रावण की नगरी), जिसे उस समय हनुमान जी ने अपनी पूँछ से जलाया था, वहां जाने का खर्च कितना आ सकता है?
यह सवाल इस बात पर निर्भर करता है कि आप श्रीलंका कितने दिनों के लिए जा रहे हैं, कहाँ-कहाँ जा रहे हैं, और कैसे जा रहे हैं। हमने औसतन अनुमान लगाया है कि यदि किसी व्यक्ति को श्रीलंका जाना हो तो इसका खर्च 30,000 से लगभग 69,000 तक आ सकता है। यह पूरी तरह उस व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह श्रीलंका में कहाँ-कहाँ जाना चाहता है, कितने दिन रुकना चाहता है, और साथ में अन्य खर्चे पर भी निर्भर करता है।
ये भी पढ़ें: Dussehra 2024: दशहरा कब है? 12 या 13 अक्टूबर? मुहूर्त और महत्व जानें
रावण की लंका की खास बातें क्या हैं?
रावण की लंका, जिसे लंकापुरी नाम से भी रामायण में जाना गया है, उसकी कुछ खास बातें भी हैं:
- सर्वप्रथम, रावण ने लंका का निर्माण नहीं किया था; यहाँ तक कि वह लंका पर राज करने वाला पहला राजा भी नहीं था।
- लंका के निर्माण की कहानी यदि आप देखें, तो पाएंगे कि लंका के निर्माण की सारी गुत्थियाँ भगवान शिव और माता पार्वती से जुड़ी हैं।
- पुराणों की जानकारी के अनुसार, लंका का निर्माण भगवान शिव और माता पार्वती ने तेज लहरों के बीच समुद्र के ठीक मध्य में भगवान विश्वकर्मा और कुबेर की उपस्थिति में किया था।
- लंका एक छोटा सा द्वीप है, जो श्रीलंका के क्षेत्रों के बीच स्थित है। वहीं सिगरिया नामक शहर में रावण रहा करता था। कुछ लोगों का मानना है कि रावण का शव आज भी वहीं है।
[…] […]