Chhath Puja 2024: साल 2024 में दीपावली के बाद अब लोगों को महापर्व छठ पूजा का बेसब्री से इंतजार है। यह पर्व मुख्यतः बिहार, झारखंड, और उत्तर प्रदेश के पूर्वी क्षेत्रों में मनाया जाता है। इसके अलावा छठ पूजा का महापर्व भारत के साथ-साथ विदेशों में भी धूमधाम से मनाया जाता है। आइए जानते हैं इस पर्व से जुड़ी जानकारी और नहाय-खाय के साथ महापर्व छठ पूजा की सही तारीख क्या है? साथ ही यह पूजा कब समाप्त होगी और इसका महत्व क्या है?
विषय सूची
छठ व्रत क्या है और छठ पूजा का उद्देश्य क्या है?
महापर्व छठ विश्व के सबसे बड़े तीज-त्योहारों में से एक है। यह पर्व सूर्य देव और उनकी पत्नी उषा की पूजा के लिए मनाया जाता है। बिहार, झारखंड, और उत्तर प्रदेश के कई जिलों में बड़े पैमाने पर मनाए जाने वाला यह व्रत अब भारत के कई अन्य राज्यों में भी प्रचलित हो रहा है। छठ मईया का यह पर्व अत्यधिक कठिन व्रतों में गिना जाता है। इस व्रत के दौरान व्रती महिलाएं चार दिनों तक कठिन निर्जला उपवास रखकर उगते और डूबते सूर्य देव की उपासना करती हैं।
महापर्व छठ पूजा का उद्देश्य:
- उगते और डूबते सूर्य देव की पूजा करना।
- उषा और प्रत्यूषा की पूजा।
- समाज और परिवार के आशीर्वाद की कामना।
- सुख, समृद्धि और सिद्धियों की प्राप्ति।
साल 2024 में छठ पूजा कब से शुरू है?
हिंदू धर्म में छठी मईया का यह पवित्र पर्व सूर्य देव और माता उषा को अर्ध्य अर्पित करने का पर्व है, जो दीपावली के केवल चार दिनों बाद आता है। मान्यता है कि यह पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। साल 2024 में छठ पूजा का आरंभ 5 नवंबर को नहाय-खाय के साथ होगा। इस दिन सूर्योदय सुबह 6 बजकर 38 मिनट पर और सूर्यास्त शाम 5 बजकर 41 मिनट पर होगा। इस दौरान पूजा विधिपूर्वक संपन्न की जा सकती है।
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छठ व्रत की तिथियां क्या हैं?
- नहाय-खाय (आरंभ) – 5 नवंबर 2024: छठ व्रत की शुरुआत इस दिन से होती है जिसे नहाय-खाय कहा जाता है।
- खरना – 6 नवंबर 2024: छठ व्रत का दूसरा और सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। इस दिन व्रती महिलाएं दिनभर निर्जला उपवास रखने के बाद शांत समय में प्रसाद ग्रहण करती हैं जिसमें खीर, रोटी, फल, और जल होता है।
- संध्या अर्घ्य – 7 नवंबर 2024: छठ पूजा के तीसरे दिन, व्रती महिलाएं नदी या तालाब के किनारे जाकर सूर्य देव को डूबते सूर्य के अर्घ्य देती हैं और परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करती हैं।
- प्रातःकालीन अर्घ्य (समापन) – 8 नवंबर 2024: अंतिम दिन, उगते सूर्य देव और माता उषा को शीतल जल में खड़े होकर अर्घ्य दिया जाता है, जिसके बाद व्रत का समापन होता है।
नहाय-खाय के नियम क्या हैं?
- सुबह सबसे पहले घर की सफाई की जाती है।
- व्रती महिलाएं स्नान करती हैं और कम तेल व मसाले का भोजन तैयार करती हैं।
- सूर्य देव को जल अर्पित कर भगवान को भोग लगाने के बाद ही भोजन ग्रहण किया जाता है।
इन नियमों का पालन करने से मन और शरीर की शुद्धि होती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
नहाय-खाय का महत्व क्या है?
इस वर्ष नहाय-खाय की शुरुआत 5 नवंबर 2024 से होगी। इस दिन प्याज-लहसुन के बिना शुद्ध और सात्विक भोजन तैयार किया जाता है। स्नान के बाद ही व्रती महिलाएं भोजन ग्रहण करती हैं जिसमें दाल, चावल, चना दाल, लौकी, और कच्चे केले की सब्जी आदि शामिल होते हैं।
छठ व्रत क्यों किया जाता है?
छठ पूजा की कथा प्राचीन हिंदू धर्मग्रंथों में वर्णित है। यह व्रत सूर्य देवता और उनकी पत्नी उषा की महिमा का बखान करता है। कथा के अनुसार, राजा प्रियव्रत ने कठिन तपस्या कर सूर्य देवता से पुत्र की प्राप्ति का वरदान मांगा। परंतु पुत्र के मरा हुआ जन्म लेने पर दुखी होकर राजा ने फिर से तपस्या की। सूर्य देव ने प्रसन्न होकर छठ पूजा करने की सलाह दी, जिससे राजा का पुत्र जीवित हो गया। इस तरह छठ पूजा सूर्य देव और उषा की पूजा के लिए प्रसिद्ध पर्व बन गया।
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मुख्य गीत
“केरवा के पटवा पर नेवता पेठवानी,
हम नेवता ना माननी।
हा, लिही ना अरघ मोरे आदित गोसईया,
दुलहिन के सूरज पुकारलस।
केरवा के राह पर नेवता पेठवानी,
नेवता के स्वीकार मत करीं।
देहब अरघ दुनो बेरा, आदित तोहे सझिया फजीरे।
गंडक के दूसरी लौ देख के थक गइल,
डीन के मदद से बेमारी ठीक हो जाला।
लोर से जाग गईनी,
हा केरवा के पटवा पे वतता पेठवानी।
निहोरा के स्वीकार करीं,
कौआ के राह पर एगो नया पालतू जानवर बा।
हम नेवता ना माननी।
नजरी के कोर से अंजोर के लोर से नींद खुलल,
रात रौवे से शुरू भइल आ दिन रौवे से शुरू भइल।
हर साल करब बरत आवेला आ हम जवन चाहत बानी ऊ हो रहल बा।
इंसानियत के भलाई करीं,
हा, लिही ना अरघ मोरे आदित गोसईया,
दुलहिन के सूरज पुकारलस।
एह चिरई के पूंछ पर नेवता पेठवानी,
हम नेवता ना माननी।
Chhath Puja 2024: निष्कर्ष
छठ पूजा सूर्य उपासना का पर्व है जिसमें अनुशासन, पवित्रता और परंपरा का अनूठा समन्वय देखने को मिलता है। साल 2024 में छठ पूजा का आरंभ 5 नवंबर से होगा और इसका समापन 8 नवंबर को उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ होगा।
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